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रहने दो अँधेरा अभी / क्षेत्र बहादुर सुनुवार

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चूजो ने सीखा नहीं
अभी ढंग से उड़ना,
बच्चो ने सीखा नहीं
खुद राह पर उतरना,
युवाओं में अभी शक्ति नहीं
कर्म अग्नि में जलना,
चकाचौंध न कर दे रोशनी
पहले पग का चलना
अतः विनय तुम्हे है हे प्रभु!
रहने दो अन्धेरा अभी।

मानव पर मानव ने अभी
मानवता का पाठ रटा नही,
फिर देश पर कुर्बान होने को
देशभक्त अभी डटा नही,
देखो वह लाल रंग में
सुनाता है अपना ही तान
हरे रंग वाले ने भी तो
छोड़ी कहाँ है अपना अभिमान
गुट-गुटो में बटे हुए हैं
गाँवो के अरमान सभी
विनय तुम्हे है हे प्रभु!
रहने दो अन्धेरा अभी।

बँधे पड़े है लोग यहाँ
अहंकार के जंजीरो में,
बंद पड़े है आह और सिसकी
दिल के चार दीवारों में,
कोई मनाता दिन में दीवाली
कही कोई चूल्हा खाली है,
बेटे ने जो हुँकार भरा
माँ-बाबू की हालत बेहाली है,
चिर निद्रा में सोए हुए
भंग न हो जब तक निन्द्रा इनकी
विनय तुम्हे है हे प्रभु!
रहने दो अन्धेरा अभी।