भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक समझौता / एज़रा पाउंड / सुरेश सलिल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:04, 3 दिसम्बर 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एज़रा पाउंड |अनुवादक=सुरेश सलिल |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तुम्हारे साथ एक समझौता करने आया हूँ, वाल्ट व्हिटमैन !
काफ़ी अरसे तक मैंने तुम्हें नापसन्द किया ।
मैं तुम्हारे पास एक ऐसे पक्की उम्र के बालक के रूप में आया हूँ
जिसके बाप की खोपड़ी सूअर की खोपड़ी जैसी थी ।
अब मेरी उम्र इतनी हो चुकी है कि दोस्ती कर सकूँ
                                              उसे निभा सकूँ ।
इस नए काष्ठ की चिराई तुम्हीं ने की थी
अब इसे सजाने - सँवारने का वक़्त आया है ।
हमारा वृक्ष-रस, हमारी जड़ एक है —
हमारे बीच अब लेन - देन का एक रिश्ता बनना ही चाहिए ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल
लीजिए, अब इसी कविता का मूल पाठ पढ़िए
              Ezra Pound
                 A Pact

I make truce with you, Walt Whitman—
I have detested you long enough.
I come to you as a grown child
Who has had a pig-headed father;
I am old enough now to make friends.
It was you that broke the new wood,
Now is a time for carving.
We have one sap and one root—
Let there be commerce between us.