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आल्बा (दो) / एज़रा पाउंड / सुरेश सलिल

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गायक पक्षी जब पूरे दिन, देर रात तक
टेरा करता निज संगिनी को, गाता अचानक
मेरी प्रिया और मैं निर्मित करते युगलकिशोररूपलताकुंज में
पुष्पपुंज में
गढ़ के प्रहरी का स्वर जब तक लगे गूँजने :
           उठो , धूर्तो, जागो,
           पौ फट रही
           रात हट रही
          अवनि रट रही
                          कि निद्रा त्यागो !