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एक लड़की / एज़रा पाउंड / धर्मवीर भारती
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एक वृक्ष मेरे हाथों में समाविष्ट हो गया है
मेरी बाँहों में अन्दर-अन्दर वृक्ष-रस चढ़ रहा
वृक्ष मेरे वक्ष में उग आया
अधोमुखी,
डालें मुझमें से उग रही हैं — बाँहों की तरह
वृक्ष वह तुम हो
तुम हो हरी काई
तुम हो वायलेट के फूल जिनपर हवा लहराती है
एक शिशु — और इतने ऊँचे — तुम हो
और देखो तो दुनिया के लिए यह मात्र नादानी है

