भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 3 मई 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: ग़ालिब Category:कविताएँ Category:गज़ल Category:ग़ालिब ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* श...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: ग़ालिब

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तसवीर के पर्दे में भी उरियाँ निकला

ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की यारब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से परअफ़्शाँ निकला

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
जो तेरी बज़्म से निकला सो परिशाँ निकला

दिल-ए-हसरतज़दा था माईदा-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द
काम यारों का बक़द्र-ए-लब-ओ-दंदाँ निकला

थी नौआमोज़-ए-फ़ना हिम्मत-ए-दुश्वारपसंद
सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला

दिल में फिर गिरिया ने इक शोर उठाया "ग़ालिब"
आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला