भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंगिका मुकरियाँ-3 / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोल-गोल मट्टी के काया,
लाल-पुरानोॅ पफेरु नाया।
भरी-भरी मूँ आगिन झोकना,
की सखि खोरनी? नै सखि बोकना।

चिलकौरी के गोदी चिलका,
छिमरी पफोड़ी पफेंकै छिलका।
गाबै देह डोलाबै गोरी,
की सखि झुम्मर? नै सखि लोरी।

तीन पफुट के लहँगा डोरी,
टुकड़ा-टुकड़ा जोरी-जोरी।
घूम-घुमौआ नाया-नाया,
की सखि चुनरी? नै सखि साया।

धरती पर नयका मेहमान,
ढोल बजाय के मंगल गान।
मीत प्रीत पर मारोॅ मोहर,
की सखि वोट? नै सखि सोहर।

चिकनोॅ-चिकनोॅ पातरो ठोेर,
आँखी के सुखलोॅ छै लोर।
जखनी देखोॅ जागले बुढ़िया,
की सखि दादी? नै सखि गुड़िया।