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अंगिका रामायण / पाँचवा सर्ग / भाग 11 / विजेता मुद्‍गलपुरी

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सगरो पूजन जोग हाथ के हुनर बाला
जिनकर कंठ सरस्वती बसि जाय छै।
परम पूजित वन-प्रहरी सुयोग्यवन्त
जौने परवत आरू जंगल बचाय छै।
पूजन के जोग पशु-पक्षी के रक्षक सिनी
सब प्राणी में जे राम के समझि पाय छै।
पूजित छै कूप अेॅ तालाब खुदबावै वाला
पूजित छै जीव के जे जीव से बचाय छै॥101॥

हिंसक परानी से सुरक्षा दिलबावै वाला
नदी के प्रदूषण से जौने कि बचाय छै।
पूजन के जोग छै जौने कि श्रमदान करै
नगर के गाँव के पवित्तर बनाय छै।
पूजित छै जौने नित हरि के चरित्र गावै
नाची-कूदी परम पुरूष के रिझाय छै।
जगत में सब दिश आसथा के रोपै लेली
ठाम-ठाम बैठी हरि चरचा चलाय छै॥102॥

पूजित छै सब दिश धरम सापेक्ष राजा
सदैव जे सत्य के रोॅ ध्वज लहराय छै।
राजा के रोॅ मन में जरा भी भेद भाव लगै
शंसय के पौधे जहाँ-तहाँ उगि जाय छै।
राजा भेल न्यायी त संजीवनी बतास भेल
सब फूल-पात में सुगन्ध बसि जाय छै।
जौने राज्य में कि अराजकता वियापी गेल
वहाँ के अनाज भी जहर बनि जाय छे॥103॥

दोहा -

राजा भ्रष्ट-अचार से, सिरजै भ्रष्ट समाज।
मुद्गल भ्रष्ट समाज ही, बनै अराजक राज॥15॥

शास्त्र के रचनिहार, शस्त्र के रचनिहार
आरो खर-पात से जे बसतु बनावै छै।
काठ-लोहा-पत्थर के जौने कि तरासी राखै
पूजित छै एकरो जे पूजित बनावै छै।
जौने कि अमूरत से मूरत स्वरूप गढ़ै।
अनगढ़ चीज उपयोगी जे बनावै छै।
पूजन के जोग जानोॅ ओहनोॅ श्रमिक जौने
परवत के तोरी केॅ पंथ निरमावै छै॥104॥

पूजित छै धरती से रतन निकालै वाला
आहनोॅ पुरूष के रोॅ जग यश गावै छै।
जिनका कृपा से कि जगत के सुअन्न मिलेॅ
सब से प्रथम वहेॅ पुरूष पुजावै छै।
सगरो जगत में जे ज्ञान के प्रकाश बाँटेॅ
वहेॅ ज्ञानदानी महाज्ञानी कहलावै छै।
सब-टा पूजित जन सगरो पूजित रहेॅ
नीति कुलगुरू रामचन्द्र के बतावै छै॥105॥

देवता-पितर-गुरू-अतिथि के पूजा नित
सैनिक के राज्य में सम्मान होना चाहियोॅ।
निरदोष पर दोष कभी न उछालेॅ कोनो
राजा के ई बात के रोॅ ध्यान होना चाहियोॅ।
निरदोष के रोॅ आँसू छत्र के रोॅ नाश करै
जन लेली राजा भगवान होना चाहियोॅ।
दोषी के उचित दण्ड, सब के समान न्याय
सत् आरो असत् के ज्ञान होना चाहियोॅ॥106॥

जथाजोग सब के रोॅ आदर करै छै राजा
ऊँच-नीच के रोॅ भाव तनियोॅ न लानै छै।
राज के रोॅ करमी जे घूस लेॅ केॅ काज करै
एकरो भी दोषी लोगें राजा के ही मानै छै।
जहाँ लोग काज करै धरम-इमान राखी
श्रम के रोॅ मूल्य राजा खुद पहचानै छै।
राजदण्ड जहाँ नीतिगत न बुझावै वहाँ
नीतिकार राज के अराजक ही मानै छै॥106॥

ज्ञानी एक भल किन्तु मूरख न दश भल
मूरख न संकट में रसता बतावै छै।
एक ही विद्वान मंत्री देखै पूरे राजपाट
सहस्त्र मूरख सोझ बात ओझरावै छै।
गुणवन्त राजा गुणवन्त के मरम जानै
मुरूख के राज्य बीच मूरख पूजावै छै।
राज्य के रोॅ नीति आरो राजा के धरम-गुण
प्रेम से वशिष्ट रामचन्द्र के बतावै छै॥108॥

दोहा -

जहाँ न गुणि जन के मिलै, उचित मान-सम्मान।
तहाँ अराजकता बसै, नित पसरै अज्ञान॥16॥

कुलवन्ती नारी जेना कामुक के संग त्यागै
संत जेना भौतिक साधन त्यागी जाय छै।
गुणी पुरोहित भी पतित यजमान त्यागै
वे-न्यायी राजा के प्रजा तेन्हें तजि जाय छै।
इहेॅ लेली राजा के होना चाही धरमशील
तभिये ऊ न्यायी नितिवान कहलाय छै।
जौने राजा राजद्रोही के दिऐ छै प्राणदान
तौने राजद्रोही के हाथें मारल जाय छै॥109॥

सैनापति सूरवीर धैर्यवान होना चाही
योद्धा शक्तिशाली बलवान होना चाहियोॅ।
सैनिक जे राज्य पर प्राण निछावर करेॅ
एन्होॅ वीर के रोॅ पहचान होना चाहियोॅ।
सैनिक के राज्य में समुचित सम्मान चाही
समय पे सदा भुगतानन होना चाहियोॅ।
सैनिक के मान के न ध्यान राखै राजा तब
घटित अनर्थ के भी भान होना चाहियोॅ॥110॥