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अंधों को भले लग रहा फस्लेबहार है / डी. एम. मिश्र

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अंधों को भले लग रहा फस्लेबहार है
मुझको दिखायी दे रहा उड़ता गुबार है

किससे कहूँ कि है क्या हक़ीक़त में दोस्तो
मुस्कान लबों पे दिखे दिल अश्कबार है

ज़्यादा न दिन चलेगी ये झूठ औ फ़रेब से
सरकार ये जायेगी मुझको ऐतबार है

जिसका है भरोसा मुझे जिससे बड़ी उम्मीद
मेरा वही है प्यार, वही जाँ निसार है

सच बोलना गले का मेरे फाँस बन गया
मेरे लिए यारों का भी अब बंद द्वार है

आपस में सभी प्यार से हँस बोलकर मिलें
मुझको उसी सुबह का फिर से इंतज़ार है