भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगम्य-गम्य राह में / अनुराधा पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगम्य-गम्य राह में, सदा अदाह-दाह में, सुप्रीत की प्रवाह में, पंथ साथ जो गहे।
गणे बबूल फूल सा, रहे निबद्ध मूल-सा, चुभे न पाँव शूल-सा, साथ-साथ जो रहे।
अभिन्न धूप-छाँव में, न रोध प्रीत पाँव में, अनंत अग्नि ठाँव में, संग-संग जो दहे।
अगाध तीव्र धार में, गणे न दंश प्यार में, मिले कभी हज़ार में, मीत साथ जो बहे।