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अजब टीस है उस मुलाक़ात की / परमानन्द शर्मा 'शरर'

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अजब टीस है उस मुलाक़ात की
न बैठे, न उठ्ठे , न कुछ बात की

बज़ाहिर न होंठों से कुछ भी कहा
नज़र ने नज़र से मगर बात की

नया चाँद देखा था जिस रात को
है ताज़ा अभी याद उस रात की

वो जो दरम्याँ मेरे उनके हुई
बनी बात क्या-क्या न उस बात की

किसी ने भी उनसे न पूछा, कहा
कहानी बना ली मेरी बात की

हक़ीक़त को मैंने हक़ीक़त कहा
ये ख़ामी रही अपनी औक़ात की

वो अपना ही क़िसा सुनाते रहे
तवज्जोह न की कुछ मेरी बात की

न तूलानी -ए -शब पे आँसू बहा
‘शरर’ सुबह होती है हर रात की