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अदृश्य कनगोजर / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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निरीह बिकल राशन मे
बुध्दिगर बहकल भाषण मे
नहि किछु अपने रान्हब
नहि ककरो रान्हल खाएब
प्रांजल सुआद ल' मुंह बिचकाएब
एहने सन बहत्तरि हाथक
अंतरी बला बांधवक मुखे
कटाह फझ्झतिक डरें
सबहक मोन केँ जुरबैत रहलहुँ
परक लेल गमगम बनबैत रहलहुँ
मुदा! अपना बेरि भनसाघर सुन्न
नहि किछु बचल बासन मे..
काज सँ बेसी आलोचना
सबहक श्रृंग प्रत्यालोचना
मूल दिशि नहि किनको ध्यान
आनक गुण सुनि भेलथि अकान
मात्र अपनहि लेल छन्हि संज्ञान
कोना क' कहबै मिथिला महान?
हमरे कएल टा बुझू नीक
दोसरक कृति केँ टांगब सीक
आगाँ भागब त' चट लेब झीक
नहि सकब त' उगलब बीख
पात पात पर हमरे राज
कहियो ने सकारब अहाँक काज
हमरे गीत आ हमरे साज
हमरे संगीत हमरे आवाज
पंचवटी हो वा एकपरिया
पञ्चकोशी सँ पूब खगडिया
टाट फटक साङ्गः संग बड़ेरी
कमला कात सँ घाट बहेड़ी
हमरे मंदिर हमरे गह्वर
ह'म विदेह राजक छी हिटलर
कखनो दिव्य त' कखनो निरंकार
कखनो परम ब्रह्म साकार
अनुगामी बनब त' भेंटत मोजर
कान- घुसब बनि अदृश्य कनगोजर