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अनिमा बोले दो ज़ुबानें, अनकटी / नबीना दास / सरबजीत गरचा

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कोई एक भूगोल विज्ञानी एवँ संग्रहकर्ता मुझसे परेशान है । मुझे एक प्रश्नावली मिली, फिर एक निजी सन्देश । ना, अब वे सचमुच की चिट्ठियाँ नहीं लिखते । ई०मेल आते हैं त्योरियों के बग़ैर, या जबड़े की उस एक ओर वाली मांसपेशी की थिरकन के बग़ैर । लेकिन बावजूद इसके मैं आशय समझ लेती हूँ । वह भूगोल विज्ञानी-सँग्रहकर्ता विश्वविख्यात है, इसलिए उससे बहस करना नहीं बनता । उफ़, वे सारे ज़्यादातर वही हैं । मैं सोच भी नहीं सकती कि एक सख्त़ औरत किसी शरीफ़ आदमी का मुखौटा सिर्फ़ मुझे यह बताने के लिए पहनेगी कि मैं एक से ज़्यादा भाषाएँ बोलती हूँ । तुम्हारा वर्तमान भौगोलिक स्थान कहाँ है, वह मुझसे पूछता है । मैं एक पठार पर हूँ, मैं कहती हूँ। नक़्शे में उसे दक्कन प्रायद्वीप कहते हैं । कभी मैं फिसल-पट्टी पर सवार होकर ब्रह्मपुत्र घाटी में नीचे सरक रही होती हूँ, तो कभी आसमान में मण्डरा रही होती हूँ । मुझे लगता है टॉलमी को इससे कोई ऐतराज़ नहीं होता। रही बात सँग्रह की, तो क्या एक से ज़्यादा भाषाओँ में बोलने पर चोट लग सकती है, या फिर उन संस्कृतियों में रहने पर जिन्हें मसालों की तरह आपस में घुला-मिला दिया गया है ताकि वो गर्मियों की पौष्टिक सब्ज़ियों या सर्दियों के शरबत या सावन में सहजन फली की एक टहनी के सँग भाँप में पक सकें ? मेरे भले आदमी ने ई०मेल में मुझे लिखा है कि यह विद्वानों के लिए वर्गीकरण को मुश्किल बना देता है. अर्थ को बीच से काट देता है ।

मैं शोर बन्द कर देती हूँ और एक शान्त क़स्बे में मोरा भोरोलू नाम की नदी को सुनती हूँ, जहाँ मियाँ भाई अपनी नाव खेते हुए आया करते, अपने चप्पू से जलकुम्भी हटाते हुए. किसी को तो मरी हुए नदी से प्यार करना ही होगा, वे कहा करते । मैं, अनिमा, अनकटी ज़ुबानों वाली, बहुत जल्द आपको आवाज़ों के भूगोल के बारे में बताऊँगी ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सरबजीत गरचा