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अनुराग-बैराग / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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हृदय के कोमल कोपल की
खिली पंखु़िड़यां प्रीत पुष्पित
मन स्नेह शील संयम संचति
अनुराग विशेष स्व-आत्महित...

प्रेम पुष्प निज गंध संग
पर अनुरागी अलि प्रीत रंग
आलिंगन अधरों का चुंबन
मनुहार, गूढ़-रहस्य दर्शन...

संपूर्ण सृजन सृष्टिगत क्रम
लौकिक प्रेम परिपूर्ण समर्पण
किंचित रीत, प्रणय बंधन
दैनिक व दैहिक आकर्षण....

यदि प्रीत रहे वंचित बंधन
न प्रेमाधार कथित यौवन
तभी पार्थिवता से परे दिखे
अद्भुत ’’अद्वैत-आत्म-संगम‘‘...
मन शांत प्रीत ज्योतिर्मय संग...