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अन्धेरा मुझ से डरता है / कुँअर रवीन्द्र

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मैं अँधेरे से नहीं डरता
अन्धेरा मुझ से डरता है
मैं उजाला अपने हाथ में लेकर चलता हूँ
 
तुम बोते रहो अँधेरे के बीज
रोज़ दर रोज़
मैं उजाले की बाड बना कर
अन्धेरा घुसने नहीं दूंगा
उसी तरह
जैसे एक किसान
अपने गन्ने के खेत को
जंगली सूअरों से बचाता है
मैं बचाऊंगा
अँधेरे से उजाले को