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अपने और तुम्हारे नाजुक सम्बन्धों से डर लगता है / रंजना वर्मा

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वादों के स्वर आज हवाओं की लहरों पर नाच रहे हैं
इन्हें बाँध लूँ लेकिन मन के अनुबंधों से डर लगता है।
अपने और तुम्हारे नाजुक सम्बंधों से डर लगता है॥

कितने ही बासी फूलों की गंध समाई है सांसों में
सागर के शत ज्वार सिमट आये हैं पागल उच्छ्वासों में।
यादें लूट गई मन अमराई के मादक बौर रसीले
तुम्हें पुकारूं जी भर जग के सम्बंधों से डर लगता है।
अपने और तुम्हारे नाजुक सम्बंधों से डर लगता है॥

लहरों के प्रत्यावर्तन पर बिखर-बिखर जाते हैं तारे
साँसों के हर एक कंपन पर निखर सपन उठते हैं सारे।
जगी हुई आंखों के सपने एक कल्पना कोर सलोनी
पुतली पलंग सुला लूँ तुमको प्रतिबंधों से डर लगता है।
अपने और तुम्हारे नाजुक सम्बंधों से डर लगता है॥

एक कसम टूटी जब धरती के अंचल से अंकुर फूटा
एक प्राण भटका जब सागर की लहरों का दर्पण टूटा।
प्रकृति वधू का प्यार सँवारूँ एक पुरुष के नेहांजन से
संस्सृति सर्जन विलय के धागों के बन्धों से डर लगता है।
अपने और तुम्हारे नाजुक सम्बंधों से डर लगता है॥