भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने चेहरे मुखौटे लगाये नहीं / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने चेहरे मुखौटे लगाए नहीं।
इसलिए तुम किसी को भी भाए नहीं।

रोटियाँ अब तो बेस्वाद लगने लगीं,
तुम तो किचन में मुँह को फुलाए नहीं।

घर में चोरी हुई पर बहुत कुछ बचा,
जबकि पुलिस को तुम बुलाये नहीं।

जेल में अब भी ख़ाली पड़ी है जगह,
मंत्री को यहाँ क्यों बुलाए नहीं।

जितनी नफ़रत करो प्यार उतना मिले,
ये भी नुस्ख़ा कभी आज़माए नहीं।

तेरा सुख चैन वापस मिले भी तो क्या
इश्क़ में अपनी लुटिया डुबाए नहीं।