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अपने रुख से ये बेहिसी कम कर / शोभना 'श्याम'

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अपने रुख से ये बेहिसी कम कर
ज़िंदगी मुझसे बेदिली कम कर

मुद्दतों से मूंदी नहीँ पलकें
अपनी यादों की रौशनी कम कर

दुश्मनों से तो दुश्मनी है ही
दोस्तों पर यक़ीन भी कम कर

हाथ से ये निकल न जायें कहीँ
ख्वाहिशें तो हैं मनचली, कम कर

चुप रहा जब बहार आने पर
हादिसों के बयान भी कम कर

माँगने से ख़ुशी नहीँ मिलती
अपनी आँखों से बेबसी कम कर

शोखियों की मुरीद हैं दुनिया
अपने चेहरे से सादगी कम कर

रौशनी मिल रही है अश्कों से
चाँद अपनी ये चाँदनी कम कर

लुत्फ जो ज़ीस्त का उठाना हो
हर घड़ी रस्म अदायगी कम कर

श्याम मंज़िल उफ़क़ पर तेरी है
दोस्ती मुझ हक़ीर की कम कर