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अपने होने के तुझे दूँ मैं हवाले कितने / भवेश दिलशाद

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अपने होने के तुझे दूँ मैं हवाले कितने
जबकि हरियाली है दरिया हैं उजाले कितने

दोस्त हमदर्द मरासिम तू बना ले कितने
आख़िरश बात यही होगी संभाले कितने

ख़ालिसुन्नस्ल बना पाये नहीं एक इंसां
सर गिराते ही रहे मज़हबों वाले कितने

कोई सुकरात कोई मीरा कोई षिव हममें
पी गये ज़हर से लबरेज़ पियाले कितने

आप अपने में मैं लौटा हूँ बड़ी मुद्दत बाद
धूल देखूं जमी कितनी पड़े जाले कितने