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अब मेरी दो-गाना को मिरा ध्यान है क्या ख़ाक / रंगीन

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अब मेरी दो-गाना को मिरा ध्यान है क्या ख़ाक
इंसान की अन्ना उसे पहचान है क्या ख़ाक

मिलती नहीं वो मुझ को तुम्हीं अब तो बता दो
इस बात में उस का अजी नुक़सान है क्या ख़ाक

हैं याद बहाने तो उसे ऐसे बहुत से
आने को यहाँ चाहिए सामान है क्या ख़ाक

उल्फ़त मिरी उस की तो हुई है कई दिन से
दिल का मिरे निकला कोई अरमान है क्या ख़ाक

रंगीं से जो पैग़ाम-सलाम उस ने किया है
सोचो तो ज़रा जी में वो इंसान है क्या ख़ाक