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अभिनन्दन है अभिनन्दन है / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

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अभिनन्दन है अभिनन्दन है।।
ओ माटी के पूत तुम्हारा
युग का शतशत वन्दन है
       अभिनन्दन है।।

तुम धरती के प्राण, कि
तुमसे इस जीवन का त्राण
तुम्हारे गीतों का अभिमान,
छिपाये मानव का कल्याण
तुम्हारे मुख से मुखरित आज,
युगों का शोषित भीषण क्रंदन है
             अभिनन्दन है।।

तुम पीड़ा के प्यार
कि तुमसे वैभव का श्रृंगार
तुम्हारे अधरों का अंगार,
मौन रह करता हाहाकार
तुम्हारी वाणी का स्वर दीन,
स्वरों में आह भरा नित क्रंदन है
              अभिनन्दन है।।

तुम थिरप्रज्ञ अजान,
बुद्ध की करूणा के युग-गान
मार्क्स के अर्वाचीन प्रमाण,
गाँधी के जीवनमय वरदान
हे ग्राम देवता विश्व भरण
तुमको प्रणाम भूनन्दन है
       अभिनन्दन है।।

तुम इनकिलाब की आग
सुप्त यौवन में भैरव राग
दलित मानवता के अमर सुहाग,
तुम्हारा प्रतिपल विकसित भाग
युग में श्रम का जय घोष लिये
चल पड़ा तुम्हारा स्यंदन है
अभिनन्दन है, अभिनन्दन है।।