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अम्बर भी आन मिले तब / सरदार सोभा सिंह

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 अम्बर भी आन मिले तब

उड़ान भरी
दबी हुई निराशा ने
आई आशाओं की बाढ़
दब गए कला औ’ दिमागी अहंकार
खिल उठी हर कली आशाओं के बाग की

धमनियाँ , शिराएँ, पोर-पोर
हुए एकाकार
हस्ती के झंझट झमेलों से पार
बिन पंखों के भी उड़ा मैं अम्बरों पर
अम्बर भी आन गिरे तब
धरती पर.