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अरे ज्ञान बिना संसार दुखी, ज्ञान बिना दुःख सुख खेणा / लखमीचंद

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अरे ज्ञान बिना संसार दुखी, ज्ञान बिना दुःख सुख खेणा,
ज्ञान से ऋषि तपस्या करते, जो तुझको पड़ा पड़ा सहणा!
ज्ञान से कार व्यवहार चालते, साहूकार से ऋण लेना!
ज्ञान से प्रजा का पालन करके, ब्याज मूल सब दे देना!
अरे ले कर्जा कोए मार किसे का, जो रहती ये सच्ची शान नही!
अधर्म करके जीना...

एक सत्यकाम ने गुरु की गउओं को इतने दिन तक चरा दिया,
जहाँ गई वो साथ गया, उसने प्रेम से उदर भरा दिया!
सत्यकाम ने गुरु के वचन को धर्मनाव पर तिरा दिया,
फ़िर से बात सुनी सांड की यम् का दर्शन करा दिया!
ज्ञानी पुरूष कोण कहे, पशुओं में भी भगवान् नही !
अधर्म करके जीना...
होए ज्ञान के कारण पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश खड़े:
ज्ञान के कारण सो कोस परे, ज्ञान के कारण पास खड़े!
मुझ को मोक्ष मिले होण ने, न्यू करके पूरी आस खड़े
जान जाओ पर रहो धर्म पे, इस देह का मान गुमान नही!
अधर्म करके जीना...

फेर अंत में क्या कहती है भला:
ज्ञान बिना मेरी टांग टूटगी, ज्ञान बिना कूदी खाई!
ज्ञान बिना में लंगडी होगी, ज्ञान बिना बुड्ढी ब्याई!
ज्ञान बिना तू मुझको खाता, कुछ मन में ध्यान करो भाई!
लख्मीचंद कह क्यों भूल गए सब, धर्म शरण की यो राही!
इस निराकार का बच्चा बन ज्या, क्यों कह मेरे में भगवान् नही!
अधर्म करके जीना चाहता, राजधर्म का ध्यान नही!
मोंत भूख का एक पिता है, फ़िर तुझे कैसे ज्ञान नही
अधर्म करके जीना चाहता, राज धर्म का ध्यान नही