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अर्थशाला / आत्म-कथन / केशव कल्पान्त

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वैसे तो मैं अर्थशास्त्रा का विद्यार्थी और एक शिक्षक रहा हूँ तथापि साहित्य में मेरी अभिरुचि रही है। अतः अचानक मेरे मन में विचार आया कि अर्थशास्त्रा विषय से सम्बन्ध्ति विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का पदानुवाद तैयार किया जाए। मैं इस कार्य में जुट गया, जिसका प्रतिपफल ‘अर्थशाला’ के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है।

‘अर्थशाला’ में अर्थशास्त्रा के चार प्रमुख अर्थशास्त्री - एडम स्मिथ, डॉ. एल्फ़्रेड मार्शल, प्रो. रौबिन्स तथा भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता की परिभाषाओं के विचारों को हिन्दी तथा अंग्रेजी में पदानुवाद किया गया है। यह तो मैं नहीं जानता कि इस पदानुवाद का अर्थ-साहित्य में क्या महत्व होगा लेकिन यह मैं अवश्य जानता हूँ कि अर्थशास्त्र के प्रारम्भिक ज्ञान हेतु अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को सरल तथा सहज रूप में प्रस्तुत करके विद्यार्थी वर्ग को अवश्य लाभ होगा तथा जटिल विचारधरा को काव्य के सरलतम स्वरूप में शीघ्रता से समझा जा सकेगा। अगर ऐसा होता है तो मैं ‘अर्थशाला’ की रचना को सार्थक मानकर अपने परिश्रम को सपफल समझूँगा।

मेरे इस प्रयास में जिन मित्रों एवं स्वजनों ने अपना अमूल्य मन और बहुमूल्य सहयोग प्रदान किया है, उनके प्रति मैं आभारी हूँ। विभागीय मित्रा डॉ. एस. सी. कुलश्रेष्ठ ने मुझे क्षण-क्षण उत्साहित किया है। पाण्डुलिपि में सुझाव देने के लिए श्री श्याम सुन्दर गर्ग, डॉ. राजीव लोचन, डॉ. भद्रपाल सिंह ‘सन्तोष’ का आभारी हूँ, जिन्होंने इस काव्य कृति को संवारा है।

अस्तु, ‘अर्थशाला’ अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के समक्ष प्रस्तुत है। विश्वास है स्नेह अवश्य प्राप्त होगा।

डॉ. केशव कल्पान्त