भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अल्हड़ नदी / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
अंजलि भर
बाँटे उजाला दीया
कभी न हारा ।
2
अंजुमन में
सारिका टेर उठी
निज धुन में ।
3
अपना देश
ॠतु -परिवर्तन
नूतन वेश ।
4
अब विदा दो
झरते पत्ते बोले
पेड़ रो दिए ।
5
अबके साल
बादल मेहरबाँ
धरा हैरान ।
6
अल्हड़ नदी
बाबुल-घर छोड़
निकल पड़ी ।
7
आई जो आँधी
चटाक टूटी डाल
गिरा घोंसला ।
8
आई सजके
सोलह हैं शृंगार
ॠतु बहार ।
9
आकाश -छत
छेदों-भरी छतरी
टपक रही ।
10
आकाश दीप
जलाए राह देखे
रजनी बाला ।
11
आया आश्विन
सुरभि की पिटारी
खोले शेफाली ।
11
आया चलके
डगमग सवेरा
हारा अँधेरा ।
12
आया सूरज
घटाओं के तेवर
देख , जा छुपा ।
13
आषाढ़ -मेघ ।
आते ही खोल बैठे ।
यादों की पोथी ।