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अवनि, घर में हो क्या / शक्ति चट्टोपाध्याय

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मुहल्ले में सुत्ता है, बन्द दरवाज़े
रात के हाथों, सुनो, साँकल बाजे
"अवनि, घर में हो क्या?"

बारह महीने यहाँ होती बरसात
गायों-से विचरते हैं मेघ हर ओर
पलटकर हरी घास बढ़ाती हाथ
छूने को मेरे दरवाज़े की कोर --
"अवनि, घर में हो क्या?"

अधडूबे दिल में कुछ दूर से आती
व्यथा के बीच जब नींद आ जाती
एकदम सुनता हूँ रात की दस्तक -
"अवनि, घर में हो क्या?"

शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित