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असहज शब्द / भारत भारद्वाज

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शब्दों की शक्ति से ही नहीं
उसके सम्प्रेषण की अदा से भी मैं परिचित था
लेकिन शब्द नहीं काम आए इस बार

ख़ुद आँख शब्द बन गईं
और वसन्त की उस साँझ को
मैंने अपने सपनों में पूरा का पूरा उतार लिया
सुख, सुख और सुख

अभी-अभी स्पर्श कर मुझे
गुज़र गया वसन्त
लेकिन कहीं भीतर झकझोर गया मुझे
वसन्त ।