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असीमित संभावना / आरती 'लोकेश'

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असीमित संभावना के घुँघरु, अपने पग में बाँध फिरूँगी,
अगणित आकांक्षा के कंगन, हाथ पहन आसमान उड़ूँगी।
अनंत स्वप्न के सत्यलोक में, स्वंतत्र समर्थ मैं विचरूँगी,
नारी हूँ, तप पतवार के बल, बाधा लहरों को ठेल बढ़ूँगी।

अतुल्य क्षमताओं के सिंधु से, मुक्ता चुन पावन हार रचूँगी,
सुरम्य वर्णों की तूलिका से, नयनों के दृश्य अभिराम रगूँगी।
द्वादश श्रुतियों सप्त सुर संग, गीतों से उर अभिषेक करूँगी,
नारी हूँ, अपार श्रद्धा के कानन, अछोर छोर को धाव गहूँगी।

अचल धरा की रज धारण कर, आकृति नव निर्माण करूँगी,
अपरिमित कल्पना तंतु धागे, सकल मगन परिधान बुनुँगी।
समग्र अंतरिक्ष आँचल भर के, नव आयामित श्वास भरूँगी,
नारी हूँ सतत कर्म की धार से, पाहन भीतर विस्फोट करूँगी।