भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँगन में दीवार पड़ गयी / धीरज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँगन में दीवार पड़ गयी सन्नाटा है द्वारे पर!
फूट-फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर!

साँझ लगाती मरहम कैसे
भला भूख के कूल्हे पर!
दुख की चढ़ी पतीली हो जब
आशाओं के चूल्हे पर!

हमने ढलते आँसू देखे तुलसी के चैबारे पर!
फूट-फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर!

तनिक दया भी नहीं दिखायी
सुख जैसे मेहमानों ने!
हृदय दुखाया पल-पल जी भर
चाची के भी तानों ने!

एक-एककर हवन हो गयीं सब खुशियाँ अंगारे पर!
फूट-फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर!

भाग्य गया वनवास ढूँढ़ने
हँसी उड़ायी लोगों ने!
नाव हमेशा रही भँवर में
फँसा दिया संयोगों ने!

देख-देख बस हँसे जमाना बैठा सिर्फ़ किनारे पर!
फूट-फूटकर अम्मा रोयीं चाचा से बँटवारे पर!