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आँधियों से थे अनमने तिनके / विनोद तिवारी

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आँधियों से थे अनमने तिनके
कौन आया बुहारने तिनके

ये ज़माने की ठोकरों में पले
आँख की किरकिरी बने तिनके

कोई लाया था एक चिन्गारी
फूँक डाले हैं आग ने तिनके

बोझ इस्पात का सँभालेंगे
एक-जुट हो के जो तने तिनके

घोंसले वालो आ गए वहशी
चीख़ते ख़ून में सने तिनके