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आँसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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आँसुओं से अपना दामन तर-बतर होने के बाद
ख़ुश्क होता है हवाओं को ख़बर होने के बाद

ये हमारी बेबसी है या मुक़द्दर का सितम
क़ैद होकर रह गए बे-बालो-पर होने के बाद

अहले महफ़िल ने तो की थी हमसे फरमाइश बहुत
गीत कोई कैसे गाते नौहागर होने के बाद

लिखने वाले ने कुछ ऐसे दास्ताने-ग़म लिखी
पढ़ने वाले रो पड़े दिल पर असर होने के बाद

सुब्ह दम सूरज की किरनों का असर भी ख़ूब है
दर्दे-दिल थम सा गया है रात भर होने के बाद

कब तलक तरसेंगे ये लब इक तबस्सुम के लिए
बारहा पूछें ये खुशियाँ चश्म तर होने के बाद

हो गया जीने का सामाँ मिल गई मंज़िल 'रक़ीब'
दर तिरा पाया जबीं ने दर-बदर होने के बाद