भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईना / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक अजीब सी ताकत होती है
आईने में
बिना किसी छान-बीन के
जो भी सामने आता है
दिखा देता है उसका चेहरा
चाहे किसी भी नस्ल का हो आईना
हमेशा वही नहीं दिखाता
जो हम चाहते हैं देखना
एक खास उम्र के बाद
कुछ लोग छोड़ देते हैं
आईने में देखना अपनी शक्ल
पर क्या आईने की गिरफ़्त से छूट सकते है वे
हमारी स्मृतियाँ भी तो
एक विशाल आईना ही है
जिसमे अक्सर देखा करते है सपनों के तिलिस्म
ज़माने भर के अक्स बनते-बिगड़ते हैं
क्या आईना केबल शीशे का ही होता है
एक दोस्त की आँख से बढ़ कर हो सकता है कोई आईना

आईना दिखाता है समय की नज़ाकत
समय का सुबह-शाम टहलना
जो जानता है वह भी कहाँ जानता है
आईने का रहस्य
मन की सब गाँठे खोलने में लगा
आईना नहीं देख सकता अपने मन पर उग आई खरोंचें

एक अजीब सी ताकत होती है आईने में फिर भी
मेरी मुश्किल है
आईने को समझना चाहती हूँ
खुद आईना बनकर

रात के आईने कितना भी गहरा पुता हो स्याह रंग
गौर से देखो तो उसमे
दिखाई पड़ेगा सुबह का चेहरा