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आऊँगा मै मेरी राहों को सजाए रखना / कुमार अनिल

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आऊँगा मैं, मेरी राहों को सजाये रखना
न मिलें फूल तो काँटे ही बिछाए रखना

माना हर सिम्त हैं नफरत के अँधेरे यारो
तुम मगर दीप मुहब्बत के जलाये रखना

मैं तेरी आँख में ठहरा हुआ इक कतरा हूँ
दोस्त तू मुझको बिखरने से बचाए रखना

सरफरोशी की तमन्ना है अगर दिल में तेरे
अपने काँधे पे सलीब अपनी उठाये रखना

याद आऊँगा तो काँटों सा चुभूंगा दिल में
और कुछ देर मुझे यूं ही भुलाये रखना

क़त्ल होने से बचाना है उजालों को अगर
जागते रहना, ज़माने को जगाये रखना

दोस्त सच कहता हूँ ये अच्छा नहीं होता है
मुद्दतों बात को यूं दिल से लगाये रखना