भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आओ बचायें अपना पर्यावरण / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आओ बचायें अपना पर्यावरण
इस पर टिका हुआ है सबका जीवन।

जंगल, ज़मीन, जल, पर्वत व झरने
सब हैं सहाय, सबसे रिश्ते अपने,
इनसे बना है अपना पर्यावरण।

सृष्टि बनी है पाँच तत्व मिलाके
पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि हवा से
साक्षात होता देव-देवी दर्शन।

ग्लोबल गरम है हिमालय पिघलता
खाकर प्लास्टिक पशुधन भी मरता,
लगता प्रलय की ओर बढ़ता चरण।

जंगल लगाना उसकी करना सुरक्षा,
पशु-पक्षी लुप्त, बिगड़ा मानव का नक्शा,
धरती भी बाँझ होती करती रुदन।

बरबाद हो रही हैं पशुओं की नस्लें
खलिहान सूना-सूना कम होतीं फसलें,
पर्यावरण संरक्षण हो अपना चलन।