भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आगन्तुक / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख ने देखा पर वाणी ने बखाना नहीं।
भावना ने छुआ पर मन ने पहचाना नहीं।
राह मैनें बहुत दिन देखी, तुम उस पर से आए भी, गए भी,
--कदाचित, कई बार--
पर हुआ घर आना नहीं।

डार्टिंगटन हाल, टौटनेस
१८ अगस्त १९५५