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आज सखी म्हारे बाग मैं हे किसी छाई अजब बहार / कृष्ण चन्द
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आज सखी म्हारे बाग मैं हे किसी छाई अजब बहार
हे ये हंस पखेरु आ रहे
जैसे अंबर मैं तारे खिलैं, ये पंख फैलाए ऐसे चलैं
जैसे नीचे को पानी ढलै हे मिलैं कर आपस मैं प्यार
हे मेरे बहुत घणे मन भा रहे
बड़ी प्यारी सुरत हे इसी, जैसे अंबर लगते किसी
मेरै मोहनी मूरत मन बसी, किसी शोभा हुई गुलजार
हे दिल आपस मैं बहला रहे
कदे बैठैं हरियल डाल पै, मैं व्याकुल इनके हाल पै
ये मायल जल की झाल पै गई बैठ ताल पै डार
हे कुछ आवैं कुछ जा रहे
सब मन की चिंता त्याग कै, फेर सब सखियां नै लाग कै
वही हंस पकड़ लिया भाग कै, इस राग कै बस संसार
हे कथा कृष्ण चन्द भी गा रहे