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आदमी के पास हो दौलत नहीं आराम है / गिरधारी सिंह गहलोत

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आदमी के पास हो दौलत नहीं आराम है
ज़िंदगी में कुछ नहीं फिर ज़िंदगी नाकाम है।

वक़्त इतना भी नहीं गर खा सके दो रोटियां
किसलिए करता बशर फिर रात दिन यूँ काम है।

बाज आओगे नशे से तुम नहीं हरगिज़ अगर
ग़म को न्योता दे रहे हो मौत ही अंजाम है।

अब सियासत को भरम है कुछ बिगड़ना है नहीं
इसलिये दिन मद भरे हैं और रंगीं शाम है।

जो भी दुनियां में जुबानें ख़ूबसूरत हैं सभी
रार कर भाषा पे तू क्या दे रहा पैग़ाम है।

अपने मुँह बनते मियां गर खुद ही मिठ्ठू याद रख
कौन कितने आब में सब देखती आवाम है।

कौन तुझको छोड़कर यूँ जा सका है ज़िंदगी
बांधने को मोह की जंजीर कितनी आम है।

मतलबी दुनियां बहुत है लोग भी शातिर बहुत
पाक दामन हो रहा क्यों हर कदम बदनाम है।

याद भी सबको दिलाना क्यों पड़े है अब 'तुरंत'
हर बशर के काम आना हर बशर का काम है।