भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपका रंग है इस कदर / भरत दीप माथुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपका रंग है इस कदर
रंग सारे हुए बेअसर

है नशा आपके रूप का
सब्ज़ ही सब्ज़ आए नज़र

बिन पिए मैकशी हो गई
नीली आँखों का देखो असर

आपके हुस्न के सामने
ज़र्द पड़ने लगा है क़मर

कोई जादू है बंगाल का
स्याह ज़ुल्फों की ज़ेरो-ज़बर

सुर्ख़ जोड़े में आए हैं वो
बाख़ुदा ढ़ा रहे हैं कहर

"दीप" है मुन्तज़िर आपका
मेरे दिल का गुलाबी नगर