भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपकी मतलबपरस्ती तो रही अपनी जगह / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपकी मतलबपरस्ती तो रही अपनी जगह।
और आदत भूल जाने की मेरी अपनी जगह।

चाहते हो गर रहें रिश्ते सलामत उम्र भर,
देनदारी हो बराबर दोस्ती अपनी जगह।

काम जो भी हो उसे तय वक़्त में पूरा करो,
और उसके बाद मस्ती दिल्लगी अपनी जगह।

ज़िन्दगी में हर तरह के लोग मिलते ही रहे,
फासला किससे रहा किससे निभी अपनी जगह।

'ज्ञान' कोशिश है रही मेरी हमेशा से यही,
कर भला होगा भला, नेकी बदी अपनी जगह।