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आपकी याद आती रही रात भर / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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मख़दूम मोहिउद्दीन और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को समर्पित

आपकी याद आती रही रात भर
नींद नखरे दिखाती रही रात भर

अक्स दीपक का दरिया में पड़ता रहा
रौशनी झिलमिलाती रही रात भर

चाँद उतरा हो आँगन में जैसे मेरे
शब निगाहों को भाती रही रात भर

मैने तुझको भुलाया तो दिल से मगर
याद सीना जलाती रही रात भर

वो मिला ही कहाँ और चला भी गया
बस हवा दर हिलाती रही रात भर