भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपको मुबारक हों समयोचित परिवर्तन / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपको मुबारक हों समयोचित परिवर्तन
मैं जैसा हूँ मुझको वैसा ही रहने दें

जो गहरी चोटें दे दूजों के जीवन पर
मैं कहता लानत है ऐसे सुख-साधन पर
औरों की मुस्कानें आप छीनते रहिए
औरों के दुख मुझको लेने दें इस मन पर
आपको मुबारक हों ख़ुशियों के अनुबंधन
मुझको संत्रास, घुटन, पीड़ाएँ सहने दें
आपको मुबारक हों...

कर्तव्यों रहित ख्याति मुझको स्वीकार नहीं
वे बादल भी कैसे जिनमें जलधार नहीं
बाग़ों के बदरंगे फूल भी भले लगते
चमकीले काग़ज़ी गुलाबों से प्यार नहीं
आपको मुबारक हों नित नूतन विज्ञापन
मुझको गुमनामी का ये मरूथल गहने दें
आपको मुबारक हों...

ये सच है लोग नहीं समझे सच्चाई को
प्रतिफल दे रहे बुरा मेरी अच्छाई को
माना कि रहा नहीं अब समय भलाई का
तो क्या मैं लगे हाथ छोड़ दूँ भलाई को
आपको मुबारक हों पूजन के लाभार्जन
होम किए हाथ यहाँ दहता है दहने दें
आपको मुबारक हों...

निंदाएँ होती हैं होने दें क्या डर है
मैं अपनी कमियों को जानूँ ये बेहतर है
होता व्यक्तित्व सबल-शुद्ध समीक्षाओं से
कोरे गुणगानों से बचना ही हितकर है
आपको मुबारक हों प्रार्थनीय संबोधन
मुझको यदि लोग बुरा कहते हैं कहने दें
आपको मुबारक हों...