भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप का हम से बेवफ़ा होना / अमीता परसुराम मीता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप का हम से बेवफ़ा होना
हो गया तय कि है जुदा होना

कब जमीं पे वो पाँव रखते हैं 
रास आया जिन्हें ‘ख़ुदा’ होना

मैं फ़रिश्ता नहीं इक इंसाँ हूँ 
लाज़मी है कोई ख़ता होना

काट कर उम्र क़ैद साँसों की
रूह ने तय किया रिहा होना

अजनबी हैं जो राह-ए-उलफत से
क्या समझ पायेंगे फ़ना होना

ख़ुद से जो नाशनास हैं ‘मीता’
क्या निभायेंगे रहनुमा होना