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आम्रपाली / विचार / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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लोग जुट्टल राजदरबार में।
सोंच में परल कए विचार में॥
होइअ मग्गह-चिट्ठी पर चरचा।
नर्त्तकी बदले जे हो खरचा॥1॥

कोनो कहे नचनियाँ दे दू।
अमात्य न देतन बेटी-बहू॥
सामन्त सऽ सान से खूब गरजल।
अजात-शत्रु पर खूब बरसल॥2॥

मग्गह के मगज ठीक करे के।
रानी बतएलन लड़ मरे के॥
नारी पर जे आँख उठाबे।
बज्जी सऽ ओक्कर आँख निकाले॥3॥

वैशाली में चलत न एकतन्त्र।
भूलतन न कोनो इ गणतंत्र॥
नारी-नर के अधिकार बरोबर।
हेलत हियाँ सब एक सरोबर॥4॥

नियम-नेम में फरक परे से।
मिलत न फुरसत कट-मरे से॥
धर्म सनातन इ हरदम सोचे।
पशु न कोनो ओक्करा नोचे॥5॥

पूछलन राजा अम्रपालि से।
काने उ लागल हालि-हालि से॥
देश के दशा भेल कमजोर।
पइसा बिना अब चलत कि जोर॥6॥

राजा अमात्य बिचार कएलन।
अम्रपाली के सदस्य बनएलन॥
राज-काज में मदत के लेल।
एहो नारी अब प्रतिनिधि भेल॥7॥

सात हजार से बेसी गण हए।
इ अम्रपालि भेल शामिल हए॥
शपथ भेल अभिषेक् पुष्करिणी पर।
राजा खुश भेलन इन रमणी पर॥8॥

संझिया बइठल आफत सभा।
मग्गह के उलटा भेला हवा॥
उपाय बताबे लग्गलन लोग।
सैनिक-संगठन से भागतो रोग॥9॥

आफत-काल के नगारा बज्जल।
सलाहकार समिति कएगो बनल॥
युद्ध के लेल अभियान ‘काली’।
जेक्कर नेता भेल अम्रपाली॥10॥