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इच्छा है या उम्मीद है या फ़क़त मानना / शिवप्रसाद जोशी

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अगर फ़र्श पर भी फूल खिल जाता
अगर हवा धूल नहीं उड़ाती
सूरज में चांद घुला होता
सिगरेट नुकसान नहीं पहुँचाती
और मनुष्य सहज मरता बीमारी से नहीं

...अगर ऐसा होता, काश!
कि
हौले से दिल निकाल कर मेज़ पर रख देते
और कहते लीजिए आज से ये आपका हुआ
मेरे पास और भी हैं रखे हुए हैं

...काश ऐसा होता
शोर बंद हो जाता
और नलों से पानी के साथ संगीत भी बहता रहता
उसे हम पीकर झूमते रहते
और नशा सिर्फ़ प्यार का होता

एक किताब होती और उसी में निकल आती कोई और किताब
कोई दरवाज़ा ऐसा होता जहाँ से आप दिल्ली में घुसते
और निकलते लाहौर में
एक सड़क होती और वहीं ले जाती जहाँ आपका मन है
एक घर होता उसमें सब रहते
जिन्होंने सहसा मिलना बंद कर दिया
वे वहीं रहते और आप उनसे मिलते रहते

कई भाषाओं में बोलना होता
और अनुवाद बोलने में ही घटित हो जाता
मैं जर्मन भाषा जानता
और उनसे मिल पाता जिनसे नहीं मिलना हो पाया
मैं सिल्विया श्वेरमान से कहता आज से आपका अनुवादक मैं

ऐसा होता कि कोई मेरी कविता उठाता और कहता-
अरे ये जर्मन भाषा है
किसी को वो स्पानी लगती किसी को फ्रेंच
मैं हिंदी में लिखता और दुनिया की सारी भाषाओं में लिखता
काश ऐसा होता..

अगर कोई पक्की दोस्ती करता
और उसके लिए उसे जान देने जैसे मुहावरों की ज़रूरत नहीं पड़ती
कोई आपको समझ जाता
आप किसी को समझ लेते
और चुप रहते काश कोई शादी करता
लेकिन प्रेम करना बंद नहीं करता
काश! प्रेम एक पेड़ हो जाता
और दुनिया का इकलौता तीर्थ वही होता

काश! अंतरिक्ष में हम सपरिवार जाते
दोस्तों के साथ भी जाते
और वहाँ एक बीयर ढाबा होता या चाय की दूकान
कई धरतियाँ होतीं
और हम उनमें टहल आते

अगर ऐसा होता कि
अप्रैल-मई-जून-जुलाई-अगस्त के बाद
फिर से आ जाता जनवरी-फ़रवरी और मार्च
बल्कि क्या ही अगर ऐसा होता कि
10 अप्रैल के बाद लौटने लगती तारीखें
और फिर आता नौ अप्रैल, आठ अप्रैल, सात अप्रैल

और इन तारीखों से गुज़रकर मैं एक सुंदर दोस्त के पास होता
जिसमें महान बनने की गुंजायश थी
बात थी पेंटिंग थी संगीत था और उधड़ती हुई शाम थी

काश! वो शाम लौट आती
या जाती रहती तारीखें पीछे की तरफ़
आगे और आगे जहाँ अपने घर पर ही होता
या यहीं होता या अपने जन्म के दिन लौट जाता
या उससे भी पहले के किसी जन्म में अगर ऐसा होता
कि फ़ेदरिको फ़ेलिनी की फ़िल्म चलती रहती चलती रहती
और मैं शालिनी कंचन के साथ बैठा रहता बैठा रहता
एट एंड हाफ की स्मृति को देखता हुआ
एक चौकीदार न टोकता अगर
अरे भाई जाओ यहाँ से
सिनेमा है ज़िंदगी नहीं
आह यही कहता हूँ अगर ऐसा होता कि सिनेमा ज़िंदगी से बढ़कर हो जाता

अरे आप तो यह कहना चाहते हैं
कोई समझ जाता
काश कोई मामले को तूल न देता
कश्मीर जहाँ है वहीं रहता हिमालय के पास
अगर ऐसा होता कि
फ़लिस्तीन एक देश होता
अमेरिका इतना बड़ा न होता
सेना किसी काम न आती

और सब किसान होते
और दुनिया के सारे बच्चों को मिलता
तोलस्तोय जैसा टीचर

अगर ऐसा होता
कि मैं तुम होता
और तुम मैं होती या मैं होता ही नहीं
तुम ही तुम होतीं...

और कुछ नहीं तो कम से कम
काश! ये होता कि
इतना ही समझ जाता
कि मुलाक़ातों का पटाक्षेप हो चुका
कोई इच्छा नहीं अगर मैं यही समझ लेता
तो बड़ी मेहरबानी होती