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इधर भी है एक दरवाजा / केदारनाथ अग्रवाल

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इधर भी है एक दरवाजा
जिधर सूरज उगता है।

उधर भी है एक दरवाजा
जिधर सूरज ढलता है।

आप चाहें
उगते सूर्य की तरफ वाले
द्वार से निकल आयें,
दिन के अखाड़े में
जोर आजमाएँ।

आप चाहे
ढलते सूर्य की तरफ वाले
द्वार से निकल आयें,
रात के अँधेरे में
अस्मिता गँवायें।

आप चाहे
घर में रहें,
भीतर बैठकर
जनता पार्टी का
रेकार्ड आराम से बजायें,
राजनीति की
उलटवासी से
दिल और दिमाग बहलायें।

रचनाकाल: ०१-०९-१९७८