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इबादत रात दिन दिन इक शख्स की ऐसे नहीं की थी / शहरयार

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इबादत रात दिन दिन इक शख्स की ऐसे नहीं की थी
खुला हम पे महब्बत आज से पहले नहीं की थी

वफ़ा करने की आदत थी सो हम करते रहे सबसे
किसी मतलब से या इनआम के बदले नहीं की थी

बस इक कौंदा सा लपका और खीरा हो गई आंखें
तेरी जानिब नज़र हमने इरादे से नहीं की थी

बसर ये उम्र हमने अपनी मर्ज़ी के मुताबिक की
बसर करते हैं जैसे लोग यां वैसे नहीं की थी।