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इरोम शर्मिला / सुदाम राठोड / प्रकाश भातम्ब्रेकर

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नाबालिग लड़की की मानिन्द
बलात्कार कर

दफ़्न किए गए प्रजातन्त्र के
पार्थिव को उलीचते हुए
शवों का लेखा-जोखा
माँग रही हो तुम इरोम
और यहाँ यह कमीनी व्यवस्था
इन्तज़ार कर रही है
तुम्हारे शव का ।

इरोम, उस भवन में भुतहा ख़ौफ़ है
और वहां क़त्ली कानून
पारित किए जाते हैं
उन्हीं से गुहार लगा रही हो तुम
आज़ादी की ?

इरोम, आज़ादी की तुम्हारी भूख ने
जबसे दाना-पानी छोड़ दिया
तभी से कुपोषण के मसले ने
तूल पकड़ लिया
और दिल्ली के तख़्त-ए-ताऊस
की गवाही से
बदरँग हुआ जीर्ण तिरँगा
भूख के मारे तिलमिला रहा है ।

सालों से
तुम्हारी नाक में नली घुसेड़कर
धड़कनें ज़िन्दा रखी जा रही हैं
और तुम्हारी बूढ़ी माँ
अश्क़ों के घूँट पी-पी कर
हर पल ख़ुद ढो रही है
तुम्हारी मौत को
तुम दिनोंदिन क्षीण होती जा रही हो
पर क्रमशः नाकाम होते जा रहे
एक-एक अवयव से
चेत रही है ज्वाला
धुन्धुआ रहा है आसमान
व्यवस्था ने न सही
पर इस युग ने ज़रूर
तुम्हारा लोहा मान लिया है ।

इरोम, आज़ादी के धर्म की
दुहाई देनेवाली दरवेश हो तुम
जीत यक़ीनन तुम्हारी ही होगी …।