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इश्क़ का फूल तो सहरा में खिला करता है / ज़ाहिद अबरोल

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इश़्क का फूल तो सहरा<ref>रेगिस्तान</ref> में खिला करता है
एक इक ज़र्रा <ref>तिनका</ref> जहां रश्क-ओ-दुआ <ref>प्रतियोगिता की भावना रख कर भी दुआ करता है</ref> करता है

यह बुरा वक़्त ही नाज़िल<ref>उतारा</ref> हुआ सर पे वरना
अपने ख़्वाबों से भला कोई डरा करता है

ज़ख़्म पल भर का, दवा रोज़, दुआ बरसों तक
यूं इलाज-ए-ग़म-ए-महबूब<ref>प्रिय के गम का इलाज</ref> हुआ करता है

दिल को सहरा दिया, आंखों को समुन्दर बख़्शा
शो'बदे<ref>जादू,छल</ref>ऐसे वो दमबाज़<ref>धूर्त,छली</ref> किया करता है

ख़ुद को तन्हा न समझ, जाम उठा ले “ज़ाहिद”
ऐसा साथी तो मुक़द्दर से मिला करता है

शब्दार्थ
<references/>