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इसाए जी हो गरीब्बां जो अन्न पाणी वो दास / धनपत सिंह

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इसाए जी हो गरीब्बां जो अन्न पाणी वो दास
इसीए हो सै भूख जयसिंह इसी एक होया कर प्यास

सांप के पिलाणे तैं भाई बणै दूध का जहर
प्यार मोहब्बत असनाई चाहिए बराबरीयां तैं बैर
चाए रोवो चाए गिड़गिड़ाओ कोई, तुम अपणी मांगे जा खैर
लूट, खसोट तबाह कर दे इसा तोल दिया कहर
तूं दो दिन म्हं दुख पाग्या हम दुख पावैं बारहा मास

कोए भूक्खा रहवै अर दिन रात कमाए जा
तूं फळी तक ना फोड़ै माल हरामी खाए जा
कोए माट्टी गेल्यां माट्टी हो तूं छाड़ बर नहाया जा
किसै नैं खाट भी नहीं मिलती तूं तकिए लाए जा
किसे की झुपड़ी भी फुक्की जा, तेरा बंगल्यां म्हं बास

गरीबों ऊपर ठाड्यां का कोए ताण ना चाहिए
करै दिन रात घुळाई दुखी किसान ना चाहिए
जो पुगण में ना आवै इसा लगान ना चाहिए
तूं पांच की वसूली म्हं करता है पचास

हिम्मत एक तो तूं जाईए, दो-चार और जाओ
असला भी लो साथ म्हं और हथियार भी ठाओ
इतणै आंख्यां पर तै पट्टी खोल्लण ना पाओ
जब तक इस जंगल तै बाहरणे छोड़ ना आओ
कहैं ‘धनपत सिंह’ इसनैं जी तैं मार दयूं जै फेर बणैं बदमाश