भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस कलम से आज कवि तुम / ईशान पथिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस कलम से आज कवि तुम,
एक नया संसार लिख दो।
हो नहीं समता जहाँ पर,
तुम वहाँ अंगार लिख दो।

आज लिख दो आँसुओ से,
एक ख़ुशी का गान कोई.
 दर्द में डूबे मनुज के,
अधर पर मुस्कान कोई.

हर ख़ुशी के कोष पर तुम,
मनुज का अधिकार लिख दो।
इस कलम से आज कवि तुम,
एक नया संसार लिख दो।
 
दे रही सदियों से धरती,
अन्न, जल, जीवन सहारा।
पर सहमकर जी रही है,
आज यमुना गंग धारा।

जो मिटाये इस धरा को,
तुम उन्हें धिक्कार लिख दो।
इस कलम से आज कवि तुम,
एक नया संसार लिख दो।
 
आज कैसा वक़्त आया,
भाई-भाई को न जाने।
सब खिंचे से जी रहे हैं,
बात किसकी कौन माने।

नफ़रतों को तुम मिटाकर,
आज केवल प्यार लिख दो।
इस कलम से आज कवि तुम,
एक नया संसार लिख दो
 मैं था और तन्हाई थी