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इस तरह से बात मनवाने का चक्कर छोड़ दे / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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इस तरह से बात मनवाने का चक्कर छोड़ दे
देख तू सीधी तरह से मेरा कालर छोड़ दे

झूठ, मक्कारी तजें नेता जी मुमकिन ही कहाँ
नाचना, गाना-बजाना कैसे किन्नर छोड़ दे

अपने होठों से ज़रा छू ले मेरे प्याले के होंठ
चाय कुछ फीकी-सी है थोड़ी-सी शक्कर छोड़ दे

न्याय की ख़ातिर वो अपना सर कटा भी ले मगर
घर की ज़िम्मेदारियों को किसके सर पर छोड़ दे

इम्तहानों के ये दिन और इश्क़ है सर पर सवार
ये न हो कि मेरे चक्कर में वो पेपर छोड़ दे

नींद माना है अधूरी शब मगर पूरी हुई
काम पर निकले हैं पंछी तू भी बिस्तर छोड़ दे

कुछ समझ में ही नहीं आता तो अक्कल मत लड़ा
ऐसे हालातों में सब उस रब के ऊपर छोड़ दे

ऐ ‘अकेला’ दुनियाभर से मोल मत ले दुश्मनी
हक़बयानी छोड़ दे, ये तीखे तेवर छोड़ दे